नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की सुबह रक्त पलास कीउमाकांत मालवीय
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सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…
15463_Subah Rakt Palash Ki : poetry by Umakant Malviya
सुबह रक्त पलाश की
अनुक्रम
- सुबह रक्त पलाश की
- समर्पण
- पुरोवचन
- जिन्दगी नेपथ्य में गुजरी
- कुहरों पर लिखे हुए
- टालो भी यार
- सूर्य
- एक आदिम अवज्ञा का
- नागफनी ने कुछ दंशन दिये उछाल
- दिन यूँ ही बीत गया
- कभी कभी
- एक चाय की चुस्की
- सील गयी धुधुवाती आग में
- बालू से तेल तुम निचोड़ोगे ?
- भीड़ की ज़रूरत है
- मैं तुम्हारे चरण चिन्हों पर चलूँ ?
- झण्डे रह जायेंगे आदमी नहीं
- सुनते हो
- टहनी पर फूल जब खिला
- प्रतिश्रुत हूँ जीने को
- कंधों पर सैकड़ों
- आ गया प्यारा दशहरा
- शिराओं में लहरती
- अपने चारों तरफ सीखचे
- आह !
- मोम के जवाब दिये
- ना तो सतर का हूँ
- रस्मी विद्रोह-भरी जेब में
- कहाँ कहाँ
- अधियारे जंगल में एक मोमबत्ती
- कहाँ आ गये ?
- गत को दधि-अक्षत्
- चलो कहीं और चलें
- फैसले और हम में फ़ासले
- आयातित नारों के नाम
- अँधियारे में जुगनू बोये थे कल
- यह कैसा देश है
- सिर्फ हूँ सवाल
- फिर आये
- हम अपने पूरे परिवेश से कटे
- गोदामों में भर लें धूप हवा पानी
- इन अँधेरे जंगलों में
- भूमिकायें दोगली
- पानी पर
- ब्याज की ऊँची दरों पर
- छलनी हुई जेब का मालिक
- उपदेशों ने
- सूरत अपनी क्या देखें
- एक आग आदिम
- गुजर गया
- मोती चुगने वाले
- आओ हम भाषण दें
- सुबह रक्त पलाश की
- बरखा की बढ़ी हुई नदिया सी रात
- सब अकारथ दिखा
- दूध का जला
- कुष्ठ गलित रातों की देन
- नाकाफी लगती है, हर ज़बान
- एक गंध पालतू
- फैली हुई हथेलियाँ
- प्रतिपदा से अमावस्या
- मेरी बदचलनी का अंदाज नया
- घर जले पड़ोसी का
- दूर दूर तक मरुथल
- पत्थर की बारिश में
- चलो घर बुहारें
- दान को क्यों मान लूँ
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